Dr Radhika Pandey का 46 वर्ष की उम्र में लिवर ट्रांसप्लांट के बाद निधन हो गया। जानिए उनके जीवन, करियर और अर्थनीति में दिए योगदान के बारे में।
परिचय

जब किसी अर्थशास्त्री का नाम जनता के बीच लोकप्रिय नहीं होता, लेकिन उसका काम देश की नीतियों में झलकता है — तो वह असली नायक होता है। ऐसी ही एक शख्सियत थीं डॉ. राधिका पांडे, जिनका 28 जून 2025 को लिवर ट्रांसप्लांट के बाद दुखद निधन हो गया। मात्र 46 वर्ष की उम्र में उनका जाना, भारत के बौद्धिक और नीति जगत की अपूरणीय क्षति है।
उनका शुरुआती जीवन और शिक्षा
डॉ. राधिका पांडे का जन्म 18 दिसंबर 1978 को हुआ था।
उन्होंने B.A. (Hons.) की पढ़ाई BHU से की।
M.A. और PhD की डिग्री Jai Narain Vyas University, Jodhpur से प्राप्त की।
उनका शोध झुकाव शुरू से ही मैक्रोइकॉनॉमिक्स, पब्लिक फाइनेंस और बिजनेस साइकल्स जैसे विषयों में था।
करियर और योगदान
2002 से 2008 तक NLU जोधपुर में पढ़ाया।
2008 से NIPFP (नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी) में बतौर एसोसिएट प्रोफेसर कार्यरत थीं।
उनकी रिपोर्टें और रिसर्च कई सरकारी कमेटियों में शामिल की गईं, जैसे:
Public Debt Management Task Force (MoF)
Foreign Investment Group (U.K. Sinha की अध्यक्षता में)
Financial Sector Legislative Reforms Commission
ThePrint में लेखन और “MacroSutra” कॉलम
राधिका जी ने 2021 से ThePrint में “MacroSutra” नामक साप्ताहिक कॉलम लिखा, जिसमें वो कठिन आर्थिक मुद्दों को सरल भाषा में जनता के सामने रखती थीं।
उनके लेखन का मकसद न सिर्फ आंकड़े पेश करना था, बल्कि उन नीतियों के मानवीय असर को उजागर करना भी था।
उनकी भाषा में एक खास बात थी — सादगी के साथ गहराई।
निधन और देश की प्रतिक्रिया
28 जून 2025 को दिल्ली के ILBS अस्पताल में लिवर ट्रांसप्लांट के बाद उनकी तबीयत बिगड़ी और उनका निधन हो गया।
नीति आयोग, अर्थशास्त्री साथियों, और कई मीडिया संस्थानों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी।
There are so many policies where you can see Radhika’s influence.” – Ila Patnaik“She was my go-to person on monetary policy.” – Sudipto Mundle
क्यों वो खास थीं?
वो किसी भी पॉलिसी को केवल आंकड़ों से नहीं, बल्कि समाज की संवेदनाओं से जोड़कर देखती थीं।
उन्होंने MSME, GST, बजट प्लानिंग, वित्तीय समावेशन जैसे विषयों पर शानदार काम किया।
उनका काम दर्शाता है कि नीति बनाना केवल टेबल वर्क नहीं है, वह लोगों के जीवन को बदलने का जरिया है।
निष्कर्ष
डॉ. राधिका पांडे का जीवन हमें बताता है कि एक शांत, समर्पित और जमीनी अर्थशास्त्री किस तरह देश की नीतियों में मौन क्रांति कर सकता है।
उनकी लेखनी, सोच और योगदान आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा और मार्गदर्शक बनकर जीवित रहेगा।
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